स्वर्गीय श्री ललित बडियारी प्रवेश द्वार
यह प्रवेश द्वार शक्तिपीठ महाकाली मंदिर परिसर के पूर्वी छोर में स्वर्गीय श्री ललित सिंह बडियारी जी के नाम पर विराजमान हैं, इस भव्या प्रवेश द्वार का निर्माण बडियारी वंशज के चौदह गांवों के बडियारी रावतों द्वारा सन 2018 में अपने दादा जी माननीय स्वर्गीय श्री ललितसिंह बडियारी जी की स्मृति में बनाया गया था, यह भव्या प्रवेश द्वार बडियारी वंशज के चौदह गांवों ने अपने दादा लैली बडियारी जी की यादों में समर्पित किया है ताकि शक्तिपीठ महाकाली मंदिर परिसर में आने वाले श्रद्धालुओं को स्वर्गीय श्री ललित बडियारी जी आशीर्वाद प्राप्त हो।देवी भगवती महाकालिंका की प्रतीमा न्याजा
यह प्रतिमा देवी भगवती महाकालिंका की दिव्य स्वरूप का प्रतीक है, यह हम बडियारी वंश की कुलदेवी भगवती महाकालिंका की दिव्य स्वरूप का प्रतीक न्याजा हैं स्थानीय लोगों में इस दिव्य स्वरूपीं प्रतीक को देवता भी कहा जाता है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लोग न्याजा की प्रतिमा को साक्षात भगवती महाकालिंका का ही स्वरूप मानते हैं जोकि साक्षात देवी के स्वरूप में गांव गांव जाकर अपनी दीषा, ध्याणी, एवं भक्तों को आशीर्वाद देती है, इस अलौकिक प्रतिमा न्याजा के दर्शन श्रद्धालुओं को तीन वर्ष के अंतराल में मार्गशीष महीने के लगभग शुल्कपक्ष प्रतिपदा को प्राप्त होते हैं,महाकाली मंदिर के बारे में
यह शक्तिपीठ देवी भगवती का मंदिर पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थापित महाकाली & कालिंका मन्दिर के नाम पर विराजमान हैै शक्तिपीठ में यह भव्य मंदिर प्रकृति की गोद में बसा एक बहुत ही सुंदर एवं रमणीक स्थल है महाकाली मंदिर हम बडियारी वंशजों चौदह गाँवों की पौराणिक धरोहर हैं यह पौराणिक धरोहर हमारे पूर्वजों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी हमें विरासत के स्वरूप में मिलती आ रही है और आने वाली पीढ़ियों को सम्मान के साथ सौंपने का भरसक प्रयास किया जा रहा हैं,दीवा माता मंन्दिर
शक्तिपीठ महाकाली मंदिर परिसर में बडियारी वंश की यह दीवा माता मंन्दिर हैं दीवा माता को स्थानीय शब्दों में भूमिया देवी के नाम से पूकारा जाता हैं, प्रत्येक वर्ष दीवा माता की पूजा गाँवों गाँवों में सुख ,समृद्धि, प्रचुरता, ऐश्वर्य, धन धान्य, विजय, यश, कीर्ति और इन्द्र् देवता को प्रसन्न करने के लिए की जाती है ताकि समयानुसार इन्द्र देवता आपनी कृपा दृष्टि और छत्र छाया से पर्याप्त मात्रा में वर्षा करते रहेंIF U HAVE ANY SUGGESTION/ ENQUIRY..
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पौराणिक कथाओं के अनुसार कई दशकों पहले बडियारी वंशज के लोगों द्वारा समुद्र तल से लगभग 2100 मीटर की उंचाई पर पौड़ी गढ़वाल और अल्मौडा कुमाँऊ के सीमावर्ती क्षेत्र पर स्थापित चौमुखी माता भगवती महाकाली मंदिर विराजमान किया गया था यह मन्दिर प्रकृति के सौन्दर्य से परिपुर्ण बाँज, बुराँस, देवदार, चीड, ईत्यादि जैसे पेडों के बीच में सुशोभित पुर्व दिशा में बर्म पुत्र हिमालय के दुर्लभ दर्शन मानों प्रकृति की गोद में बसा एक बहुत ही सुंदर एवं रमणीक और धार्मिक स्थल है यहाँ पौराणिक काल से बडियारी वंशज के चौदह गावों के बडियारी रावत हर तीन वर्ष के अंतराल में त्रेवार्षिक भगवती महाकालिंका जात्रा का निर्वाहन पूरे विधि-विधान के साथ करते आ रहे हैं इस महा जात्रा को कालिंका कौथिग (जतोडा) के नाम से भी जाना जाता है जात्रा का शुभ दिनबार देवी भगवती महाकाली मन्दिर के कुल पुरोहित पण्डित पुजारी मंम्मगाई जी द्वारा लगभग शीतकाल मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को लगभग सुनिश्चित किया जाता हैं तथ पश्चात बडियारी वंशजों के चौदह गावों के लोगों द्वारा पूरे विधि विधान से पूजा प्रस्ठान किया जाता है।
स्व० श्रीमान ललित सिंह बाडियारी जी का भव्य प्रवेश
न्याजा स्थली
भगवती कालिंका मंदिर
घंडियाल देवता, ऊफरई देवी मंदिर
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