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प्रचलित मान्यता:-
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- ऐतिहासिक विवरण के अनुसार 17वीं शताब्दी के अंत में पूरे गढवाल-कुमाऊँ पर अधिपत्य हो जाने के बाद गोरखों ने महाराज प्रधुम्न शाह को मार कर पूरे गढवाल-कुमाऊँ को अपना गुलाम बनाया दिया था इसके बाद गोरखों ने गढवाल-कुमाऊँ के जनमानस पर बहुत अत्याचार किया, गोरखों के इस अत्याचार से तंग आकर लोग घरबार छोड़ छाड़ कर जंगलों में छिप गए थे, इसी दौरान बडियारी वंशज के सर्व प्रथम व्यक्ति पूज्यनीय स्वर्गीय श्री ललितसिंह बडियारी लैली बडियारी जी भी अपना घर परिवार और परिजनों से बिछुड़ कर बच्चों के साथ साथ जंगलों में भटकते-भटकते पट्टी खाटली पौड़ी गढ़वाल के पाखापाणी पहुंच गए थे, वहाँ पर उन्होंने चट्टान खोदकर एक बहुत लम्बी गुफा तैयार की थी जोकि आज भी लैली उड्यार के नाम से विख्यात है, पिछले दशकों से नई संरचना का नवीनीकरण होने के उपरांत यहां पब्लिक इंटर कॉलेज बनाया गया, जिसके फलस्वरूप अब लैली उड्यार को पब्लिक इंटर कॉलेज ललितपुर के नाम से जाना जाता है, पौराणिक कथाओं के अनुसार लैली बडियारी जी का जन्म 17वीं शताब्दी के शुरू में टिहरी गढ़वाल के बड्यारगढ गांव में हुआ था, वह सामान्य परिवार से आते थे, उनकी शादी जाख नामक गांव में कुंडियाल परिवार की कन्या से हुई थी, कुछ समय उपरान्त उनके सात पुत्रों का जन्म हुआ था लैली बडियारी जी ने उनके नाम कुछ इस तरह रखे थे।
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- पहला पुत्र :- श्री मंगूसिंह बडियारी
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- दूसरा पुत्र :- श्री जीमासिंह बडियारी
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- तीसरा पुत्र :- श्री केम्पूसिंह बडियारी
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- चौथा पुत्र :- श्री कल्वासिंह बडियारी
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- पांचवा पुत्र :- श्री दन्तुसिंह बडियारी
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- छटवाँ पुत्र :- श्री नथुसिंह बडियारी
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- सातवाँ पुत्र :- श्री मौल्यासिंह बडियारी
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पुराण-संग्रह के अनुसार कहा जाता है कि जब गोरखों के अत्याचार से लैली बडियारी जी बहुत परेशान थे, लैली बडियारी देवी भगवती महाकालिंका के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा भक्ति और विश्वास रखते थे, एक बार भादौ मास की अंधेरी रात में रिम-झिम बारिश हो रही थी तब लैली बडियारी जी गहरी निंद्रा में सोये थे, तभी अचानक बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली चमकने के साथ बहुत भयानक गर्जना भरी आवाज होने लगी, जिससे लैली बडियारी जी भयभीत एवं हड़-बड़ाकर बैठा गए थे जब उन्होंने बाहर की ओर देखा तो सामने देवी भगवती की छाया के स्वरूप में साक्षात महाकालिंका प्रकट हो गई थी, और लैली बडियारी जी को कहा कि तुम्हें कार्तिक मास के एकादशी को पट्टी खाटली के बन्दरकोट गांव मेरे मंदिर की स्थापना कर देना इतना बोलकर महाकालिंका अंतर्ध्यान हो गई थी भक्ता की भक्ति और माता की शक्ति की कृपा दृष्टि से देखते ही देखते गांव में मन्दिर बन गया था, धीरे धीरे लोग जंगलों को काटकर घर परिवार बसाने लगे, लैली बडियारी जी ने भी बन्दरकोट गांव में अपना घर परिवार बसाया, कई दिन महीना साल का समय बीत चुके हैं, और आज लैली बडियारी जी की सन्तान विस्तार चौदह गाँवों में {गैडीगाड पौड़ी गढ़वाल और लखोरा अल्मोड़ा के सीमावर्ती क्षेत्र} हो गए हैं।
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- गैडीगाड पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र :-
- ऐतिहासिक विवरण के अनुसार 17वीं शताब्दी के अंत में पूरे गढवाल-कुमाऊँ पर अधिपत्य हो जाने के बाद गोरखों ने महाराज प्रधुम्न शाह को मार कर पूरे गढवाल-कुमाऊँ को अपना गुलाम बनाया दिया था इसके बाद गोरखों ने गढवाल-कुमाऊँ के जनमानस पर बहुत अत्याचार किया, गोरखों के इस अत्याचार से तंग आकर लोग घरबार छोड़ छाड़ कर जंगलों में छिप गए थे, इसी दौरान बडियारी वंशज के सर्व प्रथम व्यक्ति पूज्यनीय स्वर्गीय श्री ललितसिंह बडियारी लैली बडियारी जी भी अपना घर परिवार और परिजनों से बिछुड़ कर बच्चों के साथ साथ जंगलों में भटकते-भटकते पट्टी खाटली पौड़ी गढ़वाल के पाखापाणी पहुंच गए थे, वहाँ पर उन्होंने चट्टान खोदकर एक बहुत लम्बी गुफा तैयार की थी जोकि आज भी लैली उड्यार के नाम से विख्यात है, पिछले दशकों से नई संरचना का नवीनीकरण होने के उपरांत यहां पब्लिक इंटर कॉलेज बनाया गया, जिसके फलस्वरूप अब लैली उड्यार को पब्लिक इंटर कॉलेज ललितपुर के नाम से जाना जाता है, पौराणिक कथाओं के अनुसार लैली बडियारी जी का जन्म 17वीं शताब्दी के शुरू में टिहरी गढ़वाल के बड्यारगढ गांव में हुआ था, वह सामान्य परिवार से आते थे, उनकी शादी जाख नामक गांव में कुंडियाल परिवार की कन्या से हुई थी, कुछ समय उपरान्त उनके सात पुत्रों का जन्म हुआ था लैली बडियारी जी ने उनके नाम कुछ इस तरह रखे थे।
1. कोठा तल्ला
2. मरखोला
3. मवाणबाखली
4. कोठा मल्ला
5. बनंदरकोट मल्ला
6. बनंदरकोट तल्ला
7. थबडिया तल्ला
8.धोबीघाट
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- लखोरा अल्मोड़ा कुमाऊं क्षेत्र :-
1. मल्ला लखोरा
2. मल्ला लखोरा (कुणगाड)
3. मटखानी
4. तनसालीसैण
5. बाखली
6. रानी ड्यारा
कहा जाता कि जब बडियारी वंशज का विस्तार साथ गांवों में हो गया था, तब भगवती महाकालिंका फिर अपने भक्तों के सपनों में आकर बोली कि तुम बडियारी वंशज मिलकर गढ़-कुमाऊँ के ऊंचे धार में मेरी मंदिर की स्थापना कर देना, और जखोला के पुरोहित पण्डित को मेरी पूजा का कार्य भार सौंपा देना।
अंत: एक दिन बडियारी वंशज के लिए वह अशुभ घड़ी आयी थी कि लैली बडियारी जी गोरखों से लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये थे इसीलिए हम बडियारी वंशज उस महान पूज्य आत्मा की शांति एवं अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए देवी भगवती महाकालिंका की पूजा अर्चना विधि विधान के साथ करते हैं, पौराणिक काल से बडियारी वंशज के चौदह गावों के बडियारी वंशज हर तीन वर्ष के अंतराल में त्रेवार्षिक भगवती महाकालिंका जात्रा का निर्वाहन पूरे विधि-विधान के साथ करते आ रहे हैं इस महा जात्रा को कालिंका कौथिग (जतोडा) के नाम से भी जाना जाता है जात्रा का शुभ दिनबार देवी भगवती महाकाली मन्दिर के कुल पुरोहित पण्डित पुजारी जखोला थैलीसैण पौड़ी गढ़वाल मंम्मगाई जी द्वारा शीतकाल मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को लगभग मंगलवार या शनिवार को सुनिश्चित किया जाता हैं देवी भगवती महाकालिंका की महापूजा का शुभारंभ देवी भगवती का गर्भगृह भीतरी भंडार क्वाठा गांव पट्टी खाटली पौड़ी गढ़वाल से पूरे विधि विधान के साथ शुरू होती है, तथ पश्चात बडियारी वंशज के चौदह गावों के लोगों द्वारा पौराणिक विधि विधान के अनुसार पूजा प्रस्ठान किया जाता है, देवी भगवती महाकालिंका के दर्शन और इस महाजात्रा में शामिल होने के लिए देश प्रदेशों से लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं गंण अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, शक्तिपीठ महाकाली मंदिर का पूजा प्रतिष्ठान का पूरा दायित्व बडियारी वंशज पर हैं और यह बडियारी वंशज की पौराणिक धरोहर सदियों से हमारे पूर्वजों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी हमें विरासत के स्वरूप में मिलती आ रही है और आने वाली पीढ़ियों को पूरे सम्मान के साथ सौंपने का भरसक प्रयास किया जा रहा हैं,